मिरगी का दौरा पड़ऩे पर लोग सुध-बुध खो देते हैं, लेकिन डरने की जरूरत नहीं, क्योंकि इसका इलाज संभव है। यह दैवीय प्रकोप या जादू-टोने से जुड़ी समस्या नहीं, बल्कि इसका संबंध दिमाग से है। आज राष्ट्रीय मिरगी दिवस (17 नवंबर) पर इससे जुड़ी भ्रांतियां सामने लाते हुए उससे निपटने के कारगर तरीकों पर रोशनी डाल रहे हैं रोहित गुप्ता मिरगी कुछ सबसे पुरानी बीमारियों में से एक है। इसे अपस्मार और अंग्रेजी में ऐपिलेप्सी भी कहते हैं। यह न्यूरॉजिकल डिस्ऑर्डर यानी दिमाग की नसों से जुड़ी बीमारी है। इसमें मरीज को दौरे पड़ते हैं, जो आमतौर पर 30 सेकेंड से लेकर 2 मिनट तक के होते हैं। कुछ मरीजों में दौरे की अवधि लंबी भी होती है। दौरे के दौरान मरीज का बेहोश हो जाना, दांत भिंच जाना, शरीर लडख़ड़ाना, मुंह से झाग निकलना आम है। भारत में इसके मरीजों की तादाद लगभग 10 लाख है, जबकि दुनिया में करीब 5 करोड़ लोग इससे पीडि़त हैं। दिल्ली के जीबी पंत हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. विनोद पुरी के मुताबिक, किसी को कम से कम दो या इससे ज्यादा बार दौरा पड़े तभी उसे मिरगी का मरीज माना जाता... आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
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