पूरी दुनियामें अब इस पर फोकस किया जा रहा है कि कम खरीदा जाए लेकिन गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिए। एच एंड एम कलेक्शन ने तय किया कि वह ऑर्गेनिक और रीसाइकल मटेरियल का इस्तेमाल अधिक से अधिक करेंगे और इसके लिए उन्होंने स्वीडन के खुदरा बाजार से वायदा भी किया है। यह पर्यावरण को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अनुसार, दुनिया में तेल के बाद सबसे ज्यादा प्रदूषण कपड़ा उद्योग से होता है। एक टीशर्ट बनाने में 27 सौ लीटर पानी खर्च होता है और अमेरिका 10.5 मिलियन टन कपड़ों को जमीन में भरने के लिए भेजता है। मैककिंसे कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 25 फीसदी केमिकल टेक्सटाइल में प्रयोग किए जाते हैं। कपड़ोंकी कम खपत भारतीयब्रैंड में शनी हिमांशु और मिया मोरीकावा कपड़ों की कम खपत पर काम कर रहे हैं। डिजाइनर परोमीता बैनर्जी भी जापानी तकनीक से पुराने कपड़ों से नए कपड़े बनाए हैं। वीगन इस साल का शब्द है। यानी फैशन सिर्फ स्थायी होगा। कैरिंग ने कहा है कि वह अपने 16 ब्रैंड के साथ इस साल ग्रीन हाउस गैंसों का उत्सर्जन 2025 तक आधा कर देगी। सेलेब्रिटीऔर शादियां भारतमें... आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
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